
मन एक तीर्व घोड़े के समान है अगर सही समय रहते इसकी लगाम नहीं पकड़ी जाए तो यह मनुष्य का घोर शत्रु बन जाता है!
मन को केवल योग साधना के द्वारा आप सही अवस्था में वापिस ला सकते हो!!!
इसे लोगों का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उन्होंने योग को केवल एक व्ययाम और आसन तक ही सीमित कर लिया है!!!
बड़े-बड़े जिमखाने और हेल्थ क्लब में जाकर मनुष्य अपने शरीर को तो आकार दे सकता है परंतु अपने मन को सही आकार में नहीं ला सकता!
इसके दूसरी ओर योग का मार्ग है….
परम सुख शांति और संतोष का मार्ग!
योग मनुष्य को मनुष्य के साथ तथा समग्र सृष्टि के साथ जीने का ज्ञान देता है, यही कारण है कि योग के स्थान पर मनुष्य को शांति प्राप्त होती है, योग मनुष्य के सारे संघर्षों का नाश करता है, योग शरीर के साथ-साथ सीधा मन पर काम करता है!
पर ये कैसे सम्भव है मनुष्य को मनुष्य से कोई संघर्ष न हो?
विचार करे जहां प्रेम होता है क्या वंहा संघर्ष भी होता है??
अवश्य होता है किंतु थोड़ा और विचार कीजिये तो आप जान पाएंगे जिस समय संघर्ष होता है……
उस समय प्रेम का विस्मरण हो जाता है!
ओर फिर इच्छाये, अंहकार, क्रोध जागता है किंतु प्रेम नही जागता!!!
जंहा प्रेम जागता है वहाँ सारे विवाद,संघर्ष, झगड़े नष्ट हो जाते हैं!!
और मन में स्थाई रूप से प्रेम की भावना जागती है!
सही मन की स्थिति सिर्फ व्यायाम, एक्सरसाइज और जिम से नहीं मिल सकती ,यह योग के मार्ग पर आप को पूर्ण रूप से प्राप्त हो सकती है!
यदि ऐसा ही प्रेम भाव सारे विश्व के लिए जागे, तो केवल मनुष्य ही नहीं उसके आसपास का सारा वातावरण ही महक उठता है!
मनुष्य का कभी किसी मनुष्य के साथ द्वंद नहीं होता बल्कि द्वंद तो आपसी विचारों का होता है विचार न मिल पाना ही सबसे बड़े कष्ट का कारण है,
और इच्छाएं पूरी न हो पाना उससे भी बड़े कष्ट का कारण है!
जब आप योग साधना में प्रथम चरण में प्रवेश करते हैं तो जैसे जैसे प्रथम चरण पूरा होने को आता है वैसे वैसे मनुष्य केवल शरीर को ही नहीं साधने लगता बल्कि अपने मन को भी साधने लगता है ,अपनी इच्छाओं को धीरे धीरे कम करने लगता है दूसरों से अपेक्षा कम लगाने लगता है!!!
अत: सच्चे योग का मार्ग अपनाये
आभार
अनिल गोयल